निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि के धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
ऊपर लिखी गयी पंक्ति में कवि देव ने शुद्ध साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग करते हुए श्री कृष्ण की सुंदरता का चित्रण किया है। कवि देव बता रहे है कि श्री कृष्ण के पैरों की पैजनी और कमर में बंधी करधनी की मधुर ध्वनि सबको कर्णप्रिय लग रही है। उनके सांवले शरीर पर पीला वस्त्र सुशोभित हो रहा है। श्री कृष्ण का हृदयस्पर्श पाकर उनके गले में विराजमान सुन्दर बनमाला भी उल्लासित हो रही है।
शिल्प-सौंदर्य
1. भाषा: ब्रज
2. छंद: सवैया
3. अलंकार: अनुप्रास (‘कटि किंकिनि’, ‘पट पीट’, और ‘हिये हुलसै’)
4. नूपुर और कर्धनी की ध्वनि में नाद-सौंदर्य है।